Volume : 9, Issue : 1, JAN 2023

JAIPUR SAMBHAG KE PRAMUKH DHARMIK PARYATAN STHALON KA EK VISHLESHANATMAK ADHYAYAN (जयपुर संभाग के प्रमुख धार्मिक पर्यटन स्थलों का एक विश्लेषणात्मक अध्ययन)

BHUPENDRA KUMAR MAHINDRA, DR. MAHESH SINGH RAJPUT (भूपेन्द्र कुमार महेन्द्रा, डाॅ. महेश सिंह राजपूत)

Abstract

अपने मूल स्थान से किसी दूसरे स्थल की यात्रा पर्यटन कहलाती है। जब इसी यात्रा में धार्मिक भावना का समागम हो जाता है तो यही यात्रा धार्मिक पर्यटन बन जाती है। धार्मिक पर्यटन को पवित्र पर्यटन, आस्था पर्यटन तथा आध्यात्मिक पर्यटन भी कह सकते हैं। धार्मिक स्थल सामाजिक समरसता, परस्पर सद्भाव, साम्प्रदायिक सौहाद्र्र के हृदय स्थल हैं। इसमें भावनात्मक एकता के दर्शनों के साथ आध्यात्मिक उन्नति तथा आत्मिक उत्कर्ष को भी बल मिलता है। राजस्थान में कोई भी ऐसा स्थान नहीं है, जहाँ पर धार्मिक स्मारकें न हो। हर क्षेत्र में किसी न किसी लोक देवी-देवताओं की मान्यता होती है। हर जगह आपको देवालय या कहीं शिवालय मिल जायेंगे। हिन्दू-मुस्लिम साम्प्रदायिक एकता की मिसाल के रूप में कई मस्जिदें व दरगाह दिख जाएगी। जब भी इन्सान परेशानी में होता है। अपनी मन्नतों के पूरी होने पर या नई मन्नतों या मुरादों को माँगने वह धार्मिक स्थलों की ओर अग्रसर होता है। कभी-कभी धार्मिक स्थलों के इतिहास की जानकारी उनकी वास्तुकला, चित्रकारी तथा पवित्र स्थलों के भ्रमण के उद्देश्य से भी धार्मिक यात्राएँ की जाती हैं। राजस्थान के जयपुर संभाग मंे कई आस्था के केन्द्र हैं। जिसमें से गलता जी, शिला देवी मन्दिर, मोती डूंगरी का गणेश मन्दिर, लक्ष्मी नारायण मन्दिर, गोविन्द देव जी का मन्दिर, राणी सती मन्दिर, नरहद पीर की शक्कर बाबा की दरगाह, नारायणी माता, मेहन्दीपुर बालाजी जैसे धार्मिक स्थल बहुत ही प्रमुख हैं।

Keywords

पर्यटक, धार्मिक पर्यटन, मन्दिर, धार्मिक स्थल, सद्भावना, आस्था।

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References

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